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मकर संक्रान्ति का संदेश
मकर संक्रान्ति का संदेश
राम को जपो श्याम को जपो
जपो ब्रहमा विष्णु महेश को।
पर मत छीनो लोगों से
तुम उनके अधिकारो।
राष्ट्र चरित्र का तुम सब
कब करोंगे निर्माण?
बहुत हुआ खेल अब
जाती धर्म का देश में।
कुछ तो अब शरम करो
देश के निर्माताओं।
कितने सारे त्यौहार
एक तिथि पर पड़ते है।
जो की अलग-अलग
धर्म वालो के होकर भी।
एक जैसे ही लगते है
चाहे हो मकरसक्रांति
या हो वह पोंगल आदि।
फिर क्यों धर्म के नाम पर नफ़रत के बीज वोते हो।
और देश के भाईचारे को
क्यों मिटाने पर तुले हो।
नहीं किया जब भेदभाव
उस दुनियाँ को बनाने वाले ने।
फिर तुम कैसे मिटा पाओगें
उसकी बनाई दुनियाँ को।
क्यों लिया जन्म देवीदेवताओं ने
भारत की इस भूमि पर।
क्यों नहीं लिया जन्म
उन्होंने किसी और देश में।
जरा गम्भीर होकर के सोचो
तुम सब इस मूल बात को।
रघुपति राघव राजा राम
पति के पावन सीताराम।
ईश्वर अल्लाह तेरो नाम
सभी को बुध्दि दे भगवान।
सोच विचारकर करो
एकता वाले तुम काम।
तभी अमन चैन शांति
स्थापित देश में हो पायेगीं॥
हवाएँ
हवाएँ चलती रहती है
मंजिल मिलती रहती है।
कभी हुई तेज तो लोगों ने
उसे आंधी का नाम दे दिया।
और हुई जो तबाही इससे तो
उसे हवाओं के नाम मड़ दिया।
चाहकर भी हवाएँ अपनी
नरमी नहीं छोड़ती है।
चले फूलों चंदन के बागो में
तो महका देती है बागो को।
अगर चली विपरीत दिशाओं में
तो दोषित जहाँ को कर देती।
परंतु चलती रहती है
ये हवाएँ चारो दिशाओं में।
कौन किस तरह से लेता है
इन हवाओ का आनंद यहाँ।
बहुत होते ज़माने में जो
हवाओं के संग बहने लगते है।
परंतु बीच-बीच में वह भी
अपना फ़न उठाते रहते है।
और हवाओं को अपनी
तरफ मोड़ना चाहते है।
पर हवाएँ किसी की
कभी गुलाम नहीं होती।
इसलिए समान भावों से
चारो दिशाओं में बहती रहती॥
सच्चे सपूत
पग पग पर कांटे पढ़े
चलना तुम को पड़ेगा।
मंजिल से भटके हुये
मार्ग खोजना होगा।
मिल गई यदि मंजिल
तो नाम तुम्हारा होगा।
पर कांटे बोने वालो को
ये सफलता बहुत चुभेगी॥
पैर घायल और लहूलुहान हुये
उसका उन्हें कोई ग़म नहीं है।
पर पाई कैसे सफलता उन्होंने
इस बात का बहुत दुःख है।
हमनें तो न बूद कर दि थी
उनके चलने फिरने की राहे।
पर फिर भी न जाने कैसे
वो पहुँच गये मंज़िल तक॥
हो इरादे नेक अगर तो
लगन पैदा हो जाती है।
फिर बुलंद हौसले लेकर
मंजिल की ओर बढ़ जाते।
ऐसे ही शूरवीर भारत के
अपनी अपनी मंजिलें प जाते।
और भारत माँ के सच्चे सपूत
ये ही लोग कहलाते…२॥
अजनबी हो या…
जरा-सी दोस्ती कर लो…,
जरा-सा साथ निभाये।
थोड़ा तो साथ दे मेरा …,
फिर चाहे अजनबी बन जा।
मिलें किसी मोड़ पर यदि,
तो उस वक़्त पहचान लेना।
और दोस्ती को उस वक्त,
दिल से निभा देना॥
वो वक़्त वह लम्हें,
कुछ अजीब होंगे।
दुनिया में हम शायद,
खुश नसीब होंगे।
जो दूर से भी आपको,
दिलसे याद करते है।
क्या होता जब आप,
हमारे करीब होते…॥
कुछ बातें हमारी सुना करो,
कुच बातें हमसे किया करो।
दिलकी बात बता डालो,
मत होंठों को सीकर रखो।
जो बात लंबो तक ना आये,
उन्हें आँखों से कह दो तुम।
फिर भी कहना मुश्किल हो,
तो चहरे से पढ़ लिया करो॥
जब तन्हा-तन्हा मेहसूस करो।
तब मुझे आवाज़ दे देना।
मैं तुम्हारी तन्हाई दूरकर दूंगा।
हाँ बस दिलसे याद करना॥
भारत के जवान
सुनता हूँ जवानो की गाथा
आज आँसुओं को भरके।
गोलिया खाते है सीने पर
घायल दिल होता है।
चोट खाकर भी जवान
हँसता मुकरता रहता है।
खाई है जो क़सम इन्होंने
देश पर मर मिटने की॥
आंच आने नहीं देंगे
देश की शान पर।
गोलियाँ खायेंगे मर जायेंगे
पर दुश्मनो मार गिरायेंगे।
सीमाओं की रक्षा में ये
लगा देते है प्राणो को।
पर हटते नहीं ये पीछे
अपने देश की सीमाओं से॥
देख इनके बलिदानों को
आँखों से आँसू बहते है।
इतना कुछ करने पर भी
इन्हें वह सब नहीं मिलता।
जो नेता को मरने पर
बिना कुछ किये मिलता है।
और जवान के शहीद होने पर
बस तिरंगा में लिपटा जाता है॥
है कितनी शरम की बात
सोचो ज़रा दिलसे आज।
नेता कोई टैक्स नहीं देता
और लाखों का वेतन लेता है।
पर देश का सैनिक अपने
वेतन पर टैक्स देता है।
दोनों में अंतर क्या है
समझो भारत के वासियों॥
शान शौकत से बड़े घरों में
बिना किराये के रहते है।
घूमते हवाई जहाजों और
महँगी गाड़ियों में।
इनकी सुरक्षा करने को
जवान को लगना पड़ता।
अब आप ही बतलाए
कौन कर रहा देश की सेवा?
गुलामी
हम जात पात में पड़े रहेंगे।
और देश को बर्बाद करेंगे।
दूसरे देश प्रगति को चुनेंगे।
और विश्व में पहचान बनाएंगे॥
गये थे जब अंग्रेज देश से
तो जाती का बीज वह गये थे।
जिससे आपसी भाई चारा
देश में स्थापित न हो पाये।
और लड़ते रहो आपस में
जातीधर्म आदि के नाम पर।
जिस से भूल जाओगें
देश के प्रगति के पथ को॥
मिली आज़ादी भले ही हमें
पर हम आज भी गुलाम है।
पहले गोरो के कारण मरते थे।
अब उनकी काली औलाद के कारण मर रहे है।
सही कहे तो गुलामी की
जंजीरो से नहीं निकल पाये है॥
पूरे विश्व पर राज कर रहे
आज भी गोरो जन।
हम उन की करते रहते है
आज भी चापलूसी।
कैसे वह अधिपति बनकर
बैठे है विश्व की शिखर पर।
हाथ फैलाकर मांगते रहते
हम उन लोगों से भिक्षा॥
सब कुछ होते हुए भी
सदा ही रोते रहते।
क्योंकि बेच दिया है
हमने अपने ज़मीर को।
देखो गोरो की एकता को
भिन्न-२ होकर भी एक है।
तभी तो बना रखा है
उन्होंने संयुक्त राष्ट्रा अमेरिका॥
पूरे विश्व पर हुकुम चला रहा
यही संगठन आज कल।
सारे देश बने बैठे है
इसके आगे चूहे।
जिसको चाहे ये नचाते
जिसकी चाहे गर्दन दवाते।
अपना आघिपत सब पर
यही लोग दिखाते रहते॥
करे देश जो विरोध इनका
युध्द उसी से करने लगते।
फिर सैन्य बल के कारण अपने अधीन उसे कर लेते।
और गुलामी का चोला
उस देश को पहना देते।
फिर लूट संपदा उसकी ये
खुद की प्रगति कर लेते॥
बदल जाती है सोच
दिन रात जिन्हें
हम याद करते है।
वो ही अब
दूर हो गए है।
समय के अनुसार लोग
दिल से खेल गये।
वफा की उम्मीदें लगाकर
खुद धोखा खा गए।
अब मोहब्बत नाम से ही
नफरत होने लगी है॥
जिंदगी में मोड़ कुछ
ऐसे आ जाते है।
जहाँ हम अपने को
अकेला ही पाते है।
तब बदल जाते है
जिंदगी के किस्से।
और अपनी राह
खुद ही चुनते है॥
किसी से मोहब्बत होते ही
दिल दिमाग़ उसी तरफ़ बहता है।
बस प्यार-प्यार ही हमें
दिखाई पड़ता है।
और उसी के ख्यालों में
दिल हमारा डूब जाता है।
और उसे पाने की कोशिश
हमारा दिल करता है॥
पर जब मोहब्बत में
बेबफाई सामने आने लगती है।
तभी मोहब्बत से
नफरत होने लगती है॥
मोक्षमार्ग का पथ
ज्ञान धर्म की तरफ़ मेरा
ध्यान बड़ता जा रहा है।
जीवन का सच्चा अर्थ
हमे समझ आ रहा है।
बिना धर्म के मुक्तिपथ
हमें मिल नहीं सकता।
इसलिए हर कोई धर्म से
जोड़ता जा रहा है॥
जब से तुम आये हो
इस संसार में।
तब से लेकर अबतक
तुमने किया क्या है।
जरा सोचो समझो
और करो विचार।
तभी ज़िन्दगी के सच को
तुम पहचान पाओगें॥
जब भी तुम करो
तीनलोक के नाथ के दर्शन।
तो स्वंय को देखो
तुम नाथ के अंदर।
तो तुम्हें जीवन का
सच्चा पथ मिल पायेगा।
और मोक्षगति का मार्ग
तुम्हें निश्चित ही मिल जायेगा॥
वक्त से…
दर्द दिल में लेकर
भटकता रहा ज़िन्दगी में।
मिला न मुझे सुकून
पूरी ज़िन्दगी में।
पहले वक्त से लड़ता था
अब वक्त मुझसे लड़ रहा है।
और ज़िन्दगी का लुप्त
वक्त के साथ उठा रहा॥
यादों का एहसास काफ़ी है
जिंदगी जीने के लिए।
मुद्दत से चाहत थी
तुम्हें पाने की मेरी।
पर वक्त धोखा दिया
तुम्हें देखते देखते।
और तुम गैरो के साथ
जीने लगे हमें छोड़कर॥
मोहब्बत वक्त के
अनुसार नहीं होती।
ये तो दिलों के
मिलने से होती है।
जिस पर दिल
आ जाता है।
मोहब्बत उसे ही
हो जाती है॥
मौका मिलता है
कभी ख्याबों में भी
नहीं सोचा था हमने।
जो मेरे साथ हो गया
इस वर्तमान समय में।
जमाने वालो की क्या कहे
जब अपने ही रूठ गये।
समय को देखकर के
वो अपना काम कर रहे॥
समय सदा एक सा
नहीं होता जीवन का।
समय चक्र के अनुसार
परिवर्तन होता रहता है।
इसलिए उन लोगों को
अपनी सोच बदलना चाहिए।
वरना उनकी भी हालत
हमारे जैसी हो जायेगी॥
अवसर जीवन में सबको
ज़रूर एक बार मिलता है।
कुछ इसका फायदा
यही पर उठा लेते है।
और कुछ इसे नादानी में
ये मौका छोड़ देते है।
और जीवन के मौके को
खुद ही गँवा देते है॥
लकीरे क़िस्मत की खुद
उसका कर्म बनता है।
उसकी मेहनत ही उसकी
जिंदगी में रंग लाती है।
तभी तो मिट्टी से भी
वो सोना बना लेता है।
और अपनी ज़िन्दगी को
खुशाली के साथ जीता है॥
जिंदगी भी क्या है
फूल बनकर मुस्कराना जिंदगी है l
मुस्कारे के ग़म भूलाना जिंदगी है l
मिलकर लोग खुश होते है तो क्या हुआ l
बिना मिले दोस्ती निभाना भी जिंदगी है l.
जिंदगी ज़िंदा दिलो की आस होती है।
मुर्दा दिल क्या ख़ाक जीते है जिंदगी।
मिलना बिछुड़ जाना तो लगा रहता है।
जीते जी मिलते रहना ही जिंदगी है॥
जिंदगी को जब तक जीये शान से जीये।
अपनी बातो पर अटल रहकर जीये।
बोलकर मुकर जाने वाले बहुत मिलते है।
क्योकि ऐसे लोगों का ही आजकल जमाना है।
मेहनत से ख़ुद की पहचान बनाकर,
जीने वाले कम मिलते है जिंदगी में।
प्यार से जीने वाले भी कम मिलते है।
वर्तमान में जीने वाले जिन्दा दिल होते है॥
प्यार से जो जिंदगी को जीते है।
गम होते हुए भी ख़ुशी से जीते है।
ऐसे ही लोगों की जीने की कला को।
हम लोग ज़िंदा दिली जो कहते है॥
किसे हम ढूँढ रहें हैं
कल से कल तक मैं
आज को ढूँढ रहा हूँ।
जीवन के बीते पलो को,
आज में खोज रहा हूँ।
शायद मुझे वह पल
आज में मिल जाये॥
गुजरा हुआ समय,
कभी वापिस नहीं आता।
मुँह से बोले शब्द भी,
कभी वापिस नहीं आते।
इसलिए बहुत सोच समझकर,
शब्दो को बोलना चाहिए।
जिससे सुनने वाला आपकी,
वाणी से प्रभावित हो जाये॥
दिल और मन बहुत
छोटे होते हैं।
दोनों पर वाणी का बहुत,
जल्दी असर होता हैं।
जिससे कभी-कभी बड़ी,
दुश्मनी भी दोस्ती में बदल जाती हैं।
और कभी-कभी बने बनाये,
रिश्त भी बिगड़ जाते हैं॥
वैसे तो इस युग में कोई,
किसी का होता नहीं हैं।
फिर भी कुछ तो झूठे,
मायाचारी रिश्ते होते हैं।
जो दिल दिमाग़ और
मन से सोचते हैं।
और कलयुग में भी जिंदगी,
हंसते खिलखिलाते जीत हैं॥
लेखको का फर्ज
बहुत सोच विचार कर
लेखक कवि लिखते है।
अपने दिलके अल्फाजो को
अपनी क़लम से लिखते है।
जो पाठकों के चेहरो पर
मुश्कान ले आते है॥
कभी अपनी कमियों को तो
कभी समाज की कमियों को।
वो अपनी लेखनी से
सदा उजागर करते हैं।
और उन क्रूतियों को
समाज से दूर करवाते है।
तभी तो कवि लेखको को
समाज का दर्पण कहते है।
जो एक सभ्य समाज का
देश में निर्माण करवाता है॥
बदल जाती है काया
समाज गाँव और शहरों की।
इसका श्रेय भी कवि और
लेखको को दिया जाता हैं।
जो सोये लोगों को जगाकर
नई क्रांति को जन्म देते है।
और देश को उन्नति के
पथ पर ले जाते है॥
देश का लेखक कवि
अपना फ़र्ज़ निभाता है।
और देश की प्रगति में
अपना योगदान देता है॥
किसान और जवान
कुछ कर गुजरने की अब
किसानों ने ठान ली है।
और अपनी एकजुटता
देश को दिखा दी है।
किसानों का कोई जात
धर्म नहीं होता है।
उनका धर्म तो खेतों में
अन्न उगाना ही होता है॥
७० सालों में जो कुछ भी
देश के महापुरुषो ने बनाया था।
अब ये उनकी विरासत को
बेचे जा रहे है।
नहीं आता देश को चलना
तो क्यों कुर्सी से चिपके हो?
अपनी अकुशलता के चलते
क्यों देशको बेचने पर तुले हो॥
खुदके ख़र्च ख़ुद से
कम हो नहीं रहे है।
और मितव्ययता का
संदेश देश को दे रहे हो।
जबकि लाखो का वेतनभत्ता
सेवा के नाम पर ले रहे हो।
और देश की जनता का पैसा
खुद लूटे जा रहे हो।
बचा नहीं कुछ तो किसानों को दाव पर लगा दिया॥
खेतों में अन्न उंगाकर भी
खुद किसान भूखा मरता है।
और देश की सुरक्षा में भी
किसान का ही बेटा मरता है।
फिर भी किसान और जवान अपना फ़र्ज़ नहीं भूल रहे है।
और सरकार उन्हीं का
शोषण करने पर तुली है॥
बहुत खेल लिया जातपात
और धर्म के नाम का खेल।
जिसे लोग बहुत अच्छे से
अब समझ गये है।
पर इस बार पाला पड़ गया
देश के किसानों से।
और भूल गये अंहकार में की
सत्ता पर इन्होंने ही बैठाया था॥
अब यही तुम्हारे पीछे पड़ गए है
तो सत्ता से तुम्हें जाना पड़ेगा।
और अपनी करनी का फल
तुम्हें यही भोगना पड़ेगा॥
दुनियाँ को समझो
कही ग़म है तो कही खुशी।
कही प्यार तो कही टकरार।
कही मिलना तो कही बिछाना।
कही ज़िन्दगी तो कही मौत।
बड़ा ही अजीव है दृश्य
इस दुनियाँ का॥
जो दुनियाँ को समझा
और उसी अनुसार ढल गया।
वो मानो मौजमस्ती से जी गया।
जो ज़माने को नहीं समझा
वो चिंताओं में फस गया।
और अपनी ज़िन्दगी को
अलग दिशा में ले गया॥
कलयुगी ज़माने में
सभी मतलबी नहीं होते।
कुछ तो कलयुग में भी
हटकर इंसान होते है।
माना कि आज का
जमाना खराब है।
फिर भी कुछ रिश्ते तो
सदयुग जैसे होते हैं॥
इसलिए दुनियाँ को देखो,
समझो और आगे बढ़ो।
फिर जो तुम चाहोगे
वो तुम्हें मिल जाएगा।
और कलयुग में भी
नया इतिहास लिखा जाएगा॥
मध्यमवर्गियों का दर्द
सोच सोच कर रो रहा हूँ
अपनी करनी पर।
कैसा वक़्त आन पड़ा
अब सबको रोने को।
चारो ओर मची है
अब मंहगाई की मार।
फिर भी कहते थक नहीं रहे
अच्छे दिन आगये इस बार॥
कहा से चले थे
कहा तक आ पहुँचे।
क्या इससे भी ज्यादा
अच्छे दिन अब आयेंगे।
जब मध्यमवर्गी लोगों को घर में भूखे ही मरवायेंगे।
वैसे भी कौन करता परवाह
इन मध्यमवर्गी परिवारों की।
न तो वोट बैंक होते है ये
और न होते है आंदोलनकारी।
फिर क्यों करे चिंता सरकारे
मध्यमवर्गी परिवारों की॥
फंड मिलता है अमीरो से
और वोट मिले गरीबों से।
हाँ पर टैक्स सबसे ज़्यादा देते
ये ही मध्यमवर्गी परिवार।
जिस पर यश आराम और राज करती है देश की सरकारें।
सबसे ज़्यादा अच्छे दिनों में
लूट रहे मध्यमवर्गी परिवार।
जाॅब चलेंगे नये नहीं है
और हुए युवा देश के बेकार।
फिर भी अच्छे दिन कहते-२
थक नहीं रही देश की सरकार।
हाय हाय अच्छे दिन
हाय हाय अच्छे दिन
लेकर आ गई जो सरकार॥
राम नाम की लूट है
लूट सके तो लूट।
अब आगे किसने देखा है
ये मौका न जाये चूक।
जितना शोषण हो रहा
मध्यमवर्गी परिवारों का।
इतना पहले नहीं किया
पहले की सरकारो ने।
मध्यमवर्गी परिवारों का
फंड लूटा रहे अमीरो को।
और मुफ्त में बांटे जा रहे
वोटो की खातिर गरीबों में।
पर कृपा दृष्टि नहीं होती
इन मध्यमवर्गी परिवारों पर।
कुछ तो अब शरम करो
अपनी कहनी करनी पर।
कबतक जुमले छोड़ते रहोंगे
सत्ता में बने रहने को।
क्या कहकर सत्ता में आये थे
और कबतक सत्ता में रहोंगे।
प्रजातंत्र में अपनी करनी का
फल तुम भी आगे भोगोगे॥
नारी को सम्मान दो
मान मिले सम्मान मिले,
नारी को उच्च स्थान मिले।
जितनी सेवा भक्ति वह करती।
उस से ज़्यादा सम्मान मिले।
यही भावना हम भाते,
की उसको यथा स्थान मिले॥
कितना कुछ वो,
दिनरात करती है।
घर बाहर का भी
देखा करती है।
रिश्तेदारी आदि निभाती।
और फिरभी वह थकती नहीं॥
किये बिना आराम वो,
काम निरंतर करती है।
न कोई छुट्टी न ही वेतन,
कभी नहीं वह लेती है।
फिरभी निस्वार्थ भाव से,
ख्याल सब का रखती है।
ऐसी होती है महिलाएँ,
जो प्यार सभी करती है॥
करती है जो कार्य वो,
कोई दूजा न कर सकता।
सब की सुनती,
सबको सहती।
फिर भी विचलित,
वो होती नहीं।
लगी रहती दिन भर वो,
अपने घर के कामो में॥
आओ सब संकल्प ले।
महिला दिवसके अवसर पर।
सदा ही देंगे उनको,
हम सब सम्मान अब।
क्योंकि वह है हम,
सबकी जो जननी है।
सहनशीलता की इस देवी को,
कुछ तो आज उपहार दे।
अपने मीठे वचनो
और मुस्कान से।
क्यों न हम
उसका सम्मान करे॥
वो चेहरा
फूल खिलकर भी उदास हैं।
समुद्रको आज भी
पानी की प्यास हैं।
एक बार तो आप मुस्करा दो।
जिंदगी को हंसी की तलाश है॥
दिखता नहीं हँसता हुआ चेहरा
तो दिल उदास हो जाता है।
न दिल कही लगता है
और न मन कही ठहरता है।
बस तुम्हे हँसता हुआ
देखने का जी करता है।
और तेरी यादों के सहारे
जीने का दिल करता है॥
तस्वीरे बदल जाती हैं
जब अपने रूठ जाते है।
दिल के गैहराइयों में
दर्द ही दर्द छा जाता है।
चाहकर भी हम उन्हें
भूल नहीं पाते है।
जिन्होंने ज़िन्दगी में
सिर्फ अंधेरे ही दिये हैं॥
माया
दिल से दिल मिलाकर देखो।
जिंदगी की हक़ीक़त को पहचानो।
अपना अपना करना भूल जाओगें।
और आखीरमें एक ही पेड़ की छाया के नीचे आओगें।
और अपने आपको तब तुम अपने आपको पहचान पाओगें॥
छोड़कर नसवर शरीर,
एक दिन सब को जान है।
जो भी कमाया धामाया
सब यही छोड़ जाना है।
फिर भी भागता रहता है
माया के चक्कर में॥
न खाता है न पीता है,
और न चैन से जीता है।
खुद तो परेशान रहता है
और घर वाले को भी।
इसलिए संजय कहता है
की करलो कुछ अच्छे कर्म।
वो ही साथ अंत में जाना है॥
घुटन की ज़िन्दगी जीने से,
तो अच्छा है आदि खा के जीओ।
और साथ हिल मिलकर
अपने परिवार में रहो।
जो भाग्य में लिखा है
वो तुझे मेहनत से मिल जाएगा।
पर ज़्यादा की लालच में,
हंसीखुशी वाला समय निकल जायेगा।
और तेरी माया तेरे काम न आके
औरो को मिल जायेगी…॥
न समझ सका…
सब कुछ होते हुए भी
यहाँ वहाँ खोजता रहा।
जिसे तुझे खोजना था
वो तेरे से दूर होता गया।
और तू प्रभु का खेल
कभी समझ न सका।
बस दौलत के पीछे ही
तू सदा भागता रहा॥
इस दौलत के जाल को
अच्छे अच्छे नहीं समझ सके।
बस इसके मायावी जाल में
निरंतर फसते गये।
और अपने सुखचैन को
खोते चले गये।
पर सच्चे सुख को
पहचान ही न सके॥
ह्रदय की गैहराईयों में
शांति से बैठकर सोचो।
और अपनी आत्मा के
भावों को स्वयं में देखो।
सत्य तुमको दिख जायेगा
जिसपर अमल करना पड़ेगा।
तभी तेरा मानव जीवन
कमल-सा खिल जायेगा।
और राम भक्त हनुमान
तेरी सब दुख हर लेंगे॥
श्रोता कवि बने आशिक
मिले हम अपनी कविता,
गीतों के माध्यम तुमसे।
परन्तु ये तो कुछ,
और ही हो गया।
पढ़ते पढ़ते मेरे गीतों के,
तुम प्रसन्नसक बन गये।
और दिल ही दिल में,
हमें चाहने लगे।
और अपने कमेंटो से,
हमें लोभाने लगे॥
दिल से कहूँ तो मुझे भी,
पता ही नहीं चला इसका।
और हम भी तेरे कमेंटों,
के दीवाने हो गए।
अब तो तेरा मेरा हाल,
कुछ इस तरह का हैं।
जो एकदूसरे को देखे बिना
हम दोनों रह नहीं सकते॥
कितना दिलसे तुमने हमें पढ़ा।
ये तेरे चेहरे से समझ आता है।
दिल की गैहराइयों से देखे तो।
तुम में मोहब्बत नज़र आती है।
इसलिए एक श्रोता का
कवि भी आशिक बन गया है॥
जय जिनेंद्र देव
संजय जैन
मुंबई
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